बिहारी लाल, आवहु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट



बिहारी लाल, आवहु, आई छाक।
भई अबार, गाइ बहुरावहु, उलटावहु दै हाँक।
अर्जुन, भोजऽरु सुबल, सुदामा, मधुमंगल इक ताक।
मिलि बैठे सब जेंवन लागे, बहुत बने कहि पाक।
अपनी पत्रावलि सब देखत, जहँ-तहँ फेनि पिराक।
सूरदास प्रभु खात ग्‍वाल सँग, ब्रह्मलोक यह धाक।।464।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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