बिहरत हैं जमुना-जल स्याम।
राजत हैं दोउ बाहाँ-जोरी, दंपति अरु ब्रज-बाम।।
कोउ ठाढ़ीं जल जानु जंघ लौ, कोउ कटि हिरदय ग्रीव।
यह सुख बरनि सकै ऐसौ को, सुंदरता की सीव।।
स्याम अंग चंदन की आभा, नागरि केसरि अंग।
मलयज-पंक कुंकुमा मिलिकै, जल-जमुना इक रंग।।
निसि-स्रम-मिटयौ, मिटयौ तन-आलस परसि जमुन भईँ पावन।
सूर स्याम जल-मध्य जुवति-गन, जन-जन के मन-भावन।।1162।।