बिहँसि राधा कृष्न अंक लीन्ही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गुंड मलार


बिहँसि राधा कृष्न अंक लीन्ही।
अधर सौ अधर जुरि, नैन सौ नैन मिलि, हृदय सौ हृदय लगि, हरष कीन्ही।।
कंठ भुज भुज जोरि, उछँग लीन्ही नारि, भुवन दुख टारि, सुख दियौ भारी।
हरषि बोले स्याम, कुंज-तन-धन-धाम, तहाँ हम तुम संग मिलै प्यारी।।
जाहु गृह परम धन हमहूँ जैहै सदन, आइ कहुँ पास मोहिं सैन दैहौ।
'सूर' यह भाव दे, तुरतही गवन करि, कुज गृहसदन तुम जाइ रैहौ।।1948।।

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