बिधना यह संगति मोहिं दीन्ही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


बिधना यह संगति मोहिं दीन्ही।
इनकौ नाउँ प्रात नहि लीजै, कहा निठुरई कीन्ही।।
मनमोहन-गोहन-विनु अब लौ, मनु बीते जुग चारि।
बिमुखनि तै मैं कबधौ छूटौ, कब मिलिहौ बनवारि।।
इक इक दिन बिहात कैसेहूँ अब तौ रह्यौ न जाइ।
'सूर' स्याम दरसन बिनु पाऐ बार बार अकुलाइ।।1926।।

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