प्रीतम बिनु व्याकुल अति रहियत।
मधुवन जा जाती हो हरि सँग, कित एतो दुख सहियत॥
काहे काम कटुक अँग करतौ, कित वसंत रितु दहियत।
बिनु पावस अति नैन उमँगि जल, कित सरिता उर बहियत॥
जौ जानती बहुरि नहिं आवन, धाइ पीत पट गहियत।
'सूरदास' प्रभु के बिछुरे तै, कहूँ नहीं सुख लहियत॥3231॥