प्रीतम बने मरगजे बागे -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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प्रीतम बने मरगजे बागे।
सुरतकुंज तै चले प्रात उठि धन पाछै प्रिय आगे।।
छूटी लट टूटी मुकुतावलि अध घूँघपट पागे।
खंडित अधर पयोधर मुदित अति आलस निसि जागे।।
नखसिख कुसुमबिसिख की सेना मनहुँ छुटे रन रागे।
'सूरदास' निसि रसिक राधिका, बिलसे स्याम सभागे।। 82 ।।

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