प्रिया मुख देखौ स्याम निहारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


प्रिया मुख देखौ स्याम निहारि।
कहि न जाइ आनन की सोभा, रही विचारि विचारि।।
छिरोदक घूँघट हातौ करि, सन्मुख दियौ उघारि।
मनौ सुधाकर दुग्ध सिंधु तै, कढयौ कलंक पखारि।।
मुक्ता माँग सीस पर सोभित, राजति इहि आकारि।
मानौ उइगन जानि नवल ससि, आए करन जुहारि।।
भाल लाल-सिंदूर-बिंदु पर, मृगमद दियौ सुधारि।
मनौ बँधूक कुसुम ऊपर अलि बैठयौ, पंख पसारि।।
चंचल नैन चहूँदिसि चितवत, जुग खंजन अनुहारि।
मनौ परस्पर करत लराई, कीर बचाई रारि।।
वेसरि के मुक्ता मै झाई, वरन विराजति चारि।
मानौ सुरगुरु, सुक, भौम, सनि, चमकत चद मँझारि।।
अधर बिंब बिच दसन विराजत, दुति दामिनि चमकारि।
चिबुक-बिंदु-बिच दियौ विधाता, रूप सीव निरुवारि।
तरिवन स्रवन रतन मनि भूषित, सिर सीमत सँवारि।
जनु जुग भानु दुहूँ दिसि उगए, भयौ द्विधा तग हारि।।
लाल माल कुच बीच बिराजति, सखियनि गुही सिगारि।
मनहुँ धुई निर्धम अग्नि पर, तप बैठे बिपुरारि।।
सन्मुख दृष्टि परै मनमोहन, लज्जित भइ सुकुमारि।
लीन्ही उमँगि उठाइ अक भरि 'सूरदास' बलिहारि।।2118।।

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