प्रात समय उठि, सोवत सुत कौ बदन उघारयौ नंद।
रहि न सके अतसिय अकुलाने, बिरह निसा कैं द्वंद्व।
स्वच्छ सेज मैं तै मुख निकसत, गयौ तिमिर मिटि मंद।
मनु पय-निधि सुर मथत फेन फटि, दयौ दिखाई चंद।
धाए चतुर चकोर सूर मुनि, सब सखि-सखा सुछंद।
रही न सुधि सरीर अरु मन की, पीवत किरनि अमंद।।203।।