प्रात भयौ, जागौ गोपाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग ललित



प्रात भयौ, जागौ गोपाल।
नवल सुंदरी आई, बोलत तुमहिं सबै ब्रजबाल।
प्रगट्यौ भानु, मंद भयौ उड़पति फूले तरुन तमाल।
दरसन कौं ठाढ़ी व्रजबनिता, गूंथि कुसुम बनमाल।
मुखहिं धोइ सुंदर बलिहारी, करहु कलेऊ लाल।
सूरदास प्रभु आनँद के निधि, अंबुज-नैन बिसाल।।206।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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