पिय देखौ बन छबि निहारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बसंत


पिय देखौ बन छबि निहारि। बार बार यह कहतिं नारि।।
नव पल्लव बहु सुमन रंग। द्रुम-बेली-तनु भयौ अनंग।।
भँवरा भँवरी भ्रमत संग। जमुन करतिं नाना तरंग।।
त्रिबिध पवन मन हरष दैन। सदा बहत नहिं रहत चैन।।
'सूरज' प्रभु करि तुरंत गैन। चले नारि मन सुखद मैन।।2850।।

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