पियभावती राधा नारि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


पियभावती राधा नारि।
उलटि चुवन देति रसिकिनि, सकुच दीन्ही ढारि।
परस्पर दोउ भरे स्रमजल, फूँकि फूँकि झुरात।
मनहुँ बुझी अनंग ज्वाला, प्रगट करत लजात।।
बहुरि उठे सम्हारि भट ज्यौ, अँग अनग सम्हारि।
'सूर' प्रभु बन धाम बिहरत, बने दोउ वर नारि।।2459।।

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