परम चतुर वृषभानु दुलारी।
यह मति रची कृष्न मिलिबे की, परम पुनीत महा री।।
उत सुख दियौ नंदनंदन कौ, इतहिं हरष महतारी।
हार इतौ उपकार करायौ, कबहुँ न उर ते टारी।।
जे सिव-सनक-सनातन दुर्लभ, ते बस किये कुमारी।
'सूरादास' प्रभुकृपा अगोचर, निगमनि हू तै न्यारी।।2016।।