नैन गए सु फिरे नहिं फेरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


नैन गए सु फिरे नहिं फेरि।
जद्यपि घेरि घेरि मैं राखति, रहे नही पचिहारी टेरि।।
कहा कहौ सपनैहु नहिं आवत, बस्य भए हरि ही के जाइ।
मोतै कहा चूक उन जानी, जातै निपट गए बिसराइ।।
छिनहूँ की पहिचानि मानियै, उनकौ हम प्रतिपाले प्रेम।
जौ तजि गए हमारै बेसेइ, उन त्याग्यौ, हम है उहिं नेम।।
मात पिता सगहिं प्रतिपालै, संगहिं संग रहे निसि जाम।
सुनहु 'सूर' ये बाल सँघाती, प्रेम बिसारि मिले ढरि स्याम।।2294।।

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