नैना नाहिंन कछू बिचारत -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गूजरी


नैना नाहिंन कछू बिचारत।
सनमुख समर करत मोहन सौ, जद्यपि है हठि हारत।।
अवलोकत, अलसात, नवल छवि, अमित तोष अति आरत।
तमकि तमकि तरकत मृगपति ज्यौ, घूँघट पटहिं बिदारत।।
बुधिबल, कुलअभिमान, रोषरस, जीवत भँवहिं निवारत।
निदरे व्यूहसमूह स्यामअँग, पेखि पलक नहि पारत।।
स्रमित सुभट सकुचत, साहस करि, पुनि पुनि सुखहिं सम्हारत।
'सूर' स्वरूप मगन झुकि ब्याकुल, टरत न इकटक टारत।।2383।।

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