नैना कह्यौ न मानै मेरौ।
मो बरजत बरजत उठि धाए, बहुरि कियौ नहिं फेरौ।।
निकसे जल प्रवाह की नाई, पाछै फिरि न निहारयौ।
भव जंजाल तोरि तरु बन के, पल्लव हृदय विरादयौ।।
तबही तै यह दसा हमारी, जब येऊ गए त्यागी।
'सूरदास' प्रभु सौ वै लुबधे, ऐसे बड़े सभागी।।2245।।