नृत्यित हैं दोउ स्यामा-स्याम।
अंग मगन पिय तै प्यारी अति, निरखि चकित ब्रज बाम।।
तिरप लेत चपला सी चमकति, झमकत भुषन अँग।
या छबि पर उपमा कहुं नाहीं, निरखत बिबस अनंग।।
श्री राधिका सकल गुन पूरन, जाके स्याम अधीन।
संग तै होत नहीं कहुं न्यारे, भए रहत अति लीन।।
रस समुद्र मानौ उछलित भयौ, सुंदरता की खानि।
सूरदास-प्रभु रीझि थकित भए कहत न कछू बखानि।।1060।।