निगम नेति नित गावत जाकौ। राधा बस कीन्हौ है ताकौ।।
निसि बनधाम संग रहे दोऊ। इक सँग नैकु टरे नहिं कोऊ।।
प्रात गए घर घर रस पागे। अरस परस दोऊ अनुरागे।।
अपनी अपनी दसा बिचारै। भाग बड़े कहि बारबारे।।
प्यारी फेरि अभूषन साजति। बैठी रंगमहल मैं राजति।।
ज्यौं चकोर चंदा कौ आतुर। त्यौं नागरि बस गिरिधर चातुर।।
आए उझकि झरोखै झाँक्यौ। करत सिंगार सुदरिहि ताक्यौ।।
जाल-रंध्र-मग नैन लगायौ। 'सूर' स्याम मन कौ फल पायौ।।2187।।