नाना रँग उपजावत स्याम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


नाना रँग उपजावत स्याम। कोउ रीझति, कोउ खीझति बाम।।
काहू कै निसि बसत बनाइ। काहू मुख छ्वै आवत जाइ।।
बहु नायक ह्वै बिलसत आपु। जाकौ सिव पावत नहिं जापु।।
ताकौ ब्रजनारी पति जानै। कोउ आदरै, कोउ अपमानै।।
काहू सौ कहि आवन साँझ। रहत और नागरि घर माँझ।।
कबहुँ रैनि सब संग बिहात। सुनहु 'सूर' ऐसे नंदतात।।2475।।

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