नरहरि-नरहरि, सुमिरन करौ -सूरदास

सूरसागर

सप्तम स्कन्ध

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राग बिलावल
श्री नृसिंह अवतार



नरहरि-नरहरि, सुमिरन करौ। नरहरि-पद नित हिरदय धरौ।
नरहरि-रूप धरयौ जिहिं भाइ। कहों सो कथा, सुनौ चित लाइ।
हरि जब हिरन्याच्छ कौं मारयौ। दसन-अग्र पृथ्वी कों धारयौ।
हिरनकसिप सों दिति कह्यौ आइ। भ्राता वैर लेहु तुम जाइ।
हिरनकसिप दुस्सह तप कियौ। ब्रह्मा आइ दरस तब दियौ।
कहयौ तोहिं इच्छा जो होइ। माँगि लेहि हमसों वर सोइ।
राति-दिवस नभ-धरनि न मरौं। अस्त्र-सस्त्र-परहार न डरौं।
तेरी सृष्टि जहाँ लगि होइ। मोकों मारि सकै नहिं कोइ।
ब्रह्मा कह्यौ, ऐसियै होइ। पुनि हरि चाहै करिहै सोइ।
यह कहि ब्रह्मा निज पुर आए। हिनकसिप निज भवन सिधाए।
भवन आइ त्रिभुवनपति भए। इन्द्र बरुन, सबही भजि गए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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