(नंद जू) दु:ख गयौ, सुख आयौ सबनि कौ, देव-पितर भल मान्यौ।
तुम्हारौ पुत्र प्रान सबहिनि कौ, भुषन चचुर्दस जान्यौ।
हौं तौ तुम्हारे घर कौ ढाढ़ी, नाउं सुने सचु पाऊँ।
गिरि-गोबर्धन बास हमारौ, घर तजि अनत न जाऊँ।
ढाढ़िनि मेरी नाचै-गावै, हौ हूँ ढाढ़ बजाऊँ।
हमारौ चीत्यौ भयौ तुम्हारैं, जो माँगौं सो पाऊँ।
अब तुम मोकौं करौ अजाची, जो कहुँ कर न पसारौं।
द्वादैं रहौं, देहु इक मंदिर, स्याम-सुरूप निहारौं।
हंसि ढाढ़िनि ढाढ़ी सौं बोली, अब तू बरनि बधाई।
ऐसो दियौ न देहि सूर कोउ, जसुमति हौं पहिराई।।37।।