नंद-घरनि ब्रज-बधू बुलाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


नंद-घरनि ब्रज-बधू बुलाई। यह सुनिकै तुरतहिं सब आई।।
"कौन काज हम महरि हँकारी। तुम नहिं जानति जोबन भारी!"
बिहँसि कहति, "कह देति हौ गारी!" "सुरपति-पूजा करौ सँवारी’’!।।
"देखौ हम सब सुरति बिसारी।" "औरौ हमहि बूझियै गारी"।।
यह कहि हरषित भई नँद नारी। सखियनि बात कही सब प्यारी।।
सूर इंद्र-पूजा अनुसारी। तुरत करौ सब भोग सँवारी।।890।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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