धरसुत सहज बनाउ किये।
जल-सुत-पति सुत वाहन ते तिरिया मिलि सीस दिये।
सुर-भप-रिपु-वाहन के वाहन सुरपतिमित्र के सीस निये।
ताहि मध्य राजति कंठावलि मनौ नवग्रह गुदरि दिये।।
सुंदरता सोभा को सीवा त्रसै सदा यह ध्यान हिये।
धन्य ‘सूर’ एकौ पल इहिं सुख कह इहिं विनुसत कल्प जिये।। 96 ।।