दौनागिरि हनुमान सिधायौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
दौनागिरि हनुमान सिधायौ।
संजीवनि कौं भेद न पायौ, तव सब सैल उठायौ।
चितै रह्यौ तब भरत देखि कै, अवधपुरी जब आयौ।
मन मैं जानि उपद्रव भारी, बान अकास चलायौ।
राम-राम यह कहत पवन-सुत, भरत निकट तब आयौ।
पूछयौ सूर कौन हे कहि तू, हनुमत नाम सुनायौ॥150॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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