दोउ कर जोरि लेति जँमहाई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


दोउ कर जोरि लेति जँमहाई।
सोभा कहत बनति नहि मोपै, आजु सखी पिय सँग तै आई।।
सोइ आभा पुनि फेरि फबति है, बिधि आपुन रुचि रचित बनाई।
मानहुँ कुमुदिनि कनक मेरु चढ़ि, ससि सनमुख मुद सहित सिधाई।।
सोभित चिकुर ललाट, बदन पर, कुंचित कुटिल अलक बिथुराई।
नागबधू मनु अमी कोष तै, कै मधुपान अमर ह्वै आई।।
झुकि झुकि परति प्रेममदमाती, उमँगि उमँगि तनु देत दिखाई।
'सूरदास' प्रभु सखी सयानी, चुटुकिनि देत न उहि लखि पाई।।2665।।

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