देखे स्याम अचानक जात।
ब्रज की खोरि अकेले निकसे, पीतांबर कटि पर फहरात।।
लटकत मुकुट मटक भौहनि की, चटकत चलत मद मुसुकात।
पग द्वै जात बहुरि फिरि हेरत, नैन सैन दैकै नंदतात।।
निरखत नारि निकर विथकित भइँ, दुख सुख व्याकुल झुरत सिहात।
'सूर' स्यामअंग-अंग-माधुरी, चमकि चमकि चकचौंधति गात।।2218।।