देखि स्याम मन हरष बढ़ायौ।
तैसियै सरद-चाँदनी निर्मल तैसोइ रास-रंग उपजायौ।।
तैसियै कनक-बरन सब सुंदरि, इहिं सोभा पर मन ललचायौ।।
तैसियै हंस-सुता पवित्र तट, तैसोइ कल्पबृच्छ सुख-दायौ।।
करौं मनोरथ पूरन सबके, इहिं अंतर इक खेल उपायौ।।
सूर स्याम रचि कपट-चतुरई, जुवतिनि कैं मन यह भरमायौ।।1010।।