दानव वृषपर्वा बल भारी। नाम स्त्रमिष्ठा तासु कुमारी।
तासु देवयानी सौं प्यार। रहै न तासौं पल भर न्याार।
एक बार ताकैं मन आई। न्हावन- काज तड़ाग सिधाई।
ता सँग दासी गई अपार। न्हान लगीं सब बसन उतार।
अँधियारी आई तहँ भारी। दनुज-सुता तिहि तैं न निहारी।
बसन सुक्र-तनया के लीन्हे। करत उतावलि परै न चीन्हे।
सुक्र-सुता जब आई बाहर। बसन न पाए तिन ता ठाहर।
असुर-सुता कौं पहिरे देखि। मनि मैं कीन्हौं क्रोध बिसेषि।
कह्यौ मम बसन नहीं तुव जोग। तुम दानव, हम तपसी लोग।
मम पितु दियौ राज नृप करत। तू मम बसन हरत नहिं डरत।
तिन कह्यौ, तुव पितु भिच्छा खात। बहुरि कहत हमसौं यौं बात।