दाउँ धाउँ तुमहीं सब जानति।
सदा मानि तुमकौं हम आईं, अबहूँ तैसैंहि मानति।।
तुम वह बात गाँस करि राखी, हमकौं गई भुलाइ।
ता दिन कह्यौ नहीं मैं जानौं, मानि लई सतिभाइ।।
चोर सबनि चोरै करि जानै, ज्ञानी मन सब ज्ञानी।
सूरदास गोपिनि की बानी, सुनि राधा मुसुकानी।।1748।।