तै कैकई कुमंत्र कियौ -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग केदारौ
भरत-वचन, माता के प्रति


तै कैकई कुमंत्र कियौ।
अपने कर करि काल हँकारयौ, हठ करि नृप-अपराध लियौ।
श्रीपति चलत रह्यौ कहि कैसें, तेरो पाहन-कठिन हियौ।
मो अपराधी के हित कारन, तै रामहिं वनबास दियौ।
कौन काज यह राज हमारै, इहिं पावक परि कौन जियौ?
लोट सूर धरनि दोउ बंधू, मनौ तपत विष विषम पियौ॥48॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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