तेरो बुरौ न कोऊ मानै।
रस की बात मधुप नीरस सुनि, रसिक होइ सो जानै।।
दादुर बसै निकट कमलनि के, जनम न रस पहिचानै।
अलि अनुराग उड़त मन बाँध्यौ, घैर सुनत नहिं कानै।।
सरिता चली मिलन सागर कौ, कूल सबै द्रुम भानै।
कायर बकै लोह तै भागै, लरै सो ‘सूर’ बखानै।।3960।।