तू अलि कहा परयौ है पैड़े।
ब्रज तू स्याम अजा भयौ हमकौ, यहऊ बचत न बैड़े।।
यह उपदेस सेंत नहिं भाए, जो चढ़ि कहौ बरैड़े।
राखतिं जतन जसोदानंदन, हृदै माँझ सब मैंडे।।
छाँड़ि राजमारग यह लीला, कैसै चलहिं कुपैड़े।
या आदर पर अजहूँ बैठ्यौ, टरत न ‘सूर’ पलैड़े।।3615।।