बिचारत ही लागे दिन जान।
तुम बिनु नदसुवन इहिं गोकुल, निसि भइ कल्प समान।
मुरलि सब्द, कल धुनि की गुजनि, सुनियत नाही कान।
चलत न रथ गहि रही स्याम कौ, अब लागी पछितान।।
है कोउ जाइ कहै माधौ सौ, धीरज धरहिं न प्रान।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस बिनु, फुरत नहीं औसान।। 3213।।