तुम कहियौ जैसै गोकुल आवै।
दिन दस रहे भली सो कीन्ही, अब जनि गहरु लगावै।।
नहि न सुहात कछू हरि तुम बिनु, कानन भवन न भावै।
धेनु बिकल अति चरतिं नही तृन, वच्छ न पीवन धावै।।
देखत अपनी आँखिनि तुमही, हम कहि कहा जनावै।
‘सूरदास’ प्रभु कठिन होत कत, वै व्रजनाथ कहावै।।4071।।