तुमहिं बिना मन धिक अरु धिक घर।
तुमहिं बिना धिक धिक माता पितु, धिक कुल-कानि, लाज, डर।।
धिक सुत पति, धिक जीवन जग कौ, धिक तुम बिनु संसार।
धिक सो दिवस, पहर, घटिका, पल जो बिनु नंद-कुमार।।
धिक धिक स्रवन कथा बिनु हरि के, धिक लोचन बिनु रूप।
सूरदास प्रभु तुम बिनु घर जयौं, बन-भीतर के कूप।।1617।।