जोबन-दान लेउँगौ तुमसौं।
जाकैं बल तुम बदति न काहुहिं, कहा दुरावति हमसौं।।
ऐसौ धन तुम लिये फिरति हौ, दान देत सतराति।
अतिहिं गर्ब त कह्यौ न मोसौं, नित प्रति आवति जाति।।
कंचन-कलस महारस भारे हमहूँ तनक चखावहु।
सूर सुनौ बिन दिये दान के, जान नहीं तुम पावहु।।1469।।