जेंवत देव नंद सुख पायौ। कान्ह देवता प्रगट दिखायौ।।
ब्रजबासी गिरि जेंवत देख्यौ। जीवन जन्म सफल करि लेख्यौ।।
ललिता कहति राधिका आगे। जेंवत कान्ह नंद कर लागे।।
मैं जानी हरि की चतुराई। सुरपति मेटि आपु बलि खाई।।
उत जेंवत इत बातनि पागै। कहत स्याम गिरि जेंवन लागे।।
मैं जो बात कही सो आई। सहस भुजा धरि भोजन खाई।।
और देव इनकी सरि नाहीं। इत बोधत उत भोजन खाई।।
सूरदास प्रभु की यह लीला। सदा करत ब्रल मैं यह क्रीला।।911।।