जुवति अंग-सिंगार संवारति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


जुवति अंग-सिंगार सँवारति।
बेनी गूंथि, माँग मोतिनि की सीसफूल सिर धारति।।
गोरैं भाल बिदु सेंदुर पर, टीका घरयौ जराउ।
बदन चंद पर रबि तारा-मन, मानौ उदित सुभाउ।।
सुभग स्रवन तरिवन मनि-भूषित इहिं उपमानहिं पार।
मनहु काम विवि फंद बनाए, कारन नंद-कुमार।।
नासा नथ-मुकुता के भारहिं, रह्यौ अधर-तट जाइ।
दाड़िम-कन सुक लेत बन्‍यौ नहिं, कनक-फंद रह्यौ आइ।।
दमकत दसन अरुन अधरनि तर, चिबुक डिठौना भ्राजत।
दुलरी अरु तिलरी बंद तातर, सुभग हुमेल बिराजत।।
कुच कंचुकी, हार मोतिनि के भुज बाजूबंद सोहत।
डारनि चुरी करनि फुंदना-बने, कंज पास अलि जोहत।।
छुद्रघंटिका कटि लँहगा रँग तन तनसुख की सारी।
सूर ग्‍वालि दधि बेंचन निकरीं पग-नूपुर-धुनि भारी।।1498।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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