जाकौ मन लाग्‍यौ नँदलालहिं -सूरदास

सूरसागर

द्वितीय स्कन्ध

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राग कान्‍हरौ



जाकौ मन लाग्‍यौ नँदलालहिं, ताहिं और नहि भावैं (हो)।
जौ लै मीन दूध मैं डारै, बिनु जल नहिं सचुपावैं (हो)।
अति सुकुमार डोलत रस-भीनौ, सो रस जाहि पियावै (हो)।
ज्‍यौं गूंगौ गुर खाइ अधिक रस, सुख-सबाद न बतावै (हो)।
जैसैं सरिता मिलै सिंधु कौं, बहुरि प्रवाह न आवै (हौ)।
ऐसैं सूर कमललोचन तै, चित नहि अनत डुलावै (हौ)।।10।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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