जाकौ मन लाग्यौ नँदलालहिं, ताहिं और नहि भावैं (हो)।
जौ लै मीन दूध मैं डारै, बिनु जल नहिं सचुपावैं (हो)।
अति सुकुमार डोलत रस-भीनौ, सो रस जाहि पियावै (हो)।
ज्यौं गूंगौ गुर खाइ अधिक रस, सुख-सबाद न बतावै (हो)।
जैसैं सरिता मिलै सिंधु कौं, बहुरि प्रवाह न आवै (हौ)।
ऐसैं सूर कमललोचन तै, चित नहि अनत डुलावै (हौ)।।10।।