जसोदा बार बार यौ भाषै।
है कोउ ब्रज मै हितू हमारौ, चलत गुपालहिं राखै।।
कहा काज मेरे छगन मगन कौं, नृप मधुपुरी बुलायौ।
सुफलकसुत मेरे प्रान हरन कौ, काल रूप ह्वै आयौ।।
बरु यह गोधन हरौ कस सब, मोहिं बंदि लै मेलौ।
इतनोई सुख कमलनयन मेरौ अँखियनि आगै खेलौ।।
बासर बदन बिलोकत जीवौ, निसि निज अंकम लाऊँ।
तिहिं बिछुरत जौ जियौ कर्मबस, तौ हँसि काहि बुलाऊँ।।
कमलनयन गुन टेरत टेरत, अधर बदन कुम्हिलानी।
'सूर' कहाँ लगि प्रगटि जनाऊँ, दुखित नंद जु की रानी।।2973।।