जसोदा कान्हहु तैं दधि प्यारौ?
डारि देहि कर मथत मथानी, तरसत नंद-दुलारौ।
दूध-दही-माखन लै वारौं, जाहि करति तू गारौ।
कुम्हिलानौ मुख-चंद देखि छबि, कोह न नैंकु निवारी?
ब्रह्म, सनक, सिव ध्यान न पावत, सो ब्रज गैयनि चारौ।
सूर स्याम पर बलि-बलि जैऐ, जीवन-प्रान हमारौ।।378।।