जसोदा, तेरौ चिरजीवहु गोपाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



जसोदा, तेरौ चिरजीवहु गोपाल।
वेगि बढै़ बल सहित बिरध लट महरि मनोहर बाल।
उपजि परयौ सिसु कर्म-पुन्य फल, समुद-सीप ज्यौं लाल।
सब गोकुल कौ प्रान-जीवन-धन, बैरिनि कौ उर-साल।
सूर कितौ सुख पाबत लोचन, निरखत घुटुरुनि चाल।
झारत रज लागै मेरी अँखियनि रोग-दोष-जंजाल।।138।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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