जसोदा, तेरौ चिरजीवहु गोपाल।
वेगि बढै़ बल सहित बिरध लट महरि मनोहर बाल।
उपजि परयौ सिसु कर्म-पुन्य फल, समुद-सीप ज्यौं लाल।
सब गोकुल कौ प्रान-जीवन-धन, बैरिनि कौ उर-साल।
सूर कितौ सुख पाबत लोचन, निरखत घुटुरुनि चाल।
झारत रज लागै मेरी अँखियनि रोग-दोष-जंजाल।।138।।