जसुमति अति ही भई बिहाल।
सुफलकसुत यह तुमहिं बूझियत, हरत हमारे बाल।।
ये दोउ भैया जीवन हमरे, कहति रोहिनी रोइ।
धरनी गिरति, उठति अति व्याकुल, कहि राखत नहिं कोइ।।
निठुर भए जब तै यह आयौ, घरहूँ आवत नाहिं।
'सूर' कहा नृप पास तुम्हारौ, हम तुम बिनु मरि जाहिं।।2978।।