जब तै स्रवन सुन्यौ तेरौ नाम।
तब तै हा राधा हा राधा, हरि, यहै मंत्र जपत दुरि दाम।।
बसत निकुंज कालिंदी कै तट, सुरभी सखा छाँढ़ि सुख धाम।
बिरह बियोग महा जोगी ज्यौ, जागत ही बीतत जुग जाम।।
कबहुँक किसलय पीठि रुचिर रचि, कबहुँक गान करत गुन ग्राम।
कबहुँक लोचन मूँदि, मौन ह्वै चित चिंतन अँग अँग अभिराम।।
तरपत नैन, हृदय होमत हबि, मन बच कर्म और नहिं काम।
'सूर' स्याम कृसगात सबै बिधि, दरसन दै पुरबहि पिय काम।।2781।।