जबहि चले ऊधौ मधुबन तै, गोपिनि मनहिं जनाइ गई।
बारबार अलि लागे स्रवननि, कछु दुख कछु हिय हर्ष भई।।
जहँ तहँ काग उड़ावन लागी, हरि आवत उड़ि जाहि नही।
समाचार कहि जबहिं मनावतिं, उड़ि बैठत सुनि औचकही।।
सखी परस्पर यह कही बातै, आजु स्याम कै आवत है।
किधौ ‘सूर’ कोऊ ब्रज पठयौ, आजु खबरि कै पावत है।। 3454।।