ग्वालिनि उरहन कैं मिस आई।
नंद-नँदन तन-मन हरि लीन्हौ, बिनु देखे छिन रह्यौ न जाई।
सुनहु महरि अपने सुत के गुन, कहा कहौं किहि भाँति बनाई।
चोली फारि, हार गहि तोर्यौ, इन बातनि कहौ कौन बड़ाई।
माखन खाइ, खवायौ ग्वालनि, जो उबर्यौ सो दियौ लुढ़ाई।
सुनहु सूर, चोरी सहि लीन्हीं, अब कैसें सहि जाति ढिठाई।।303।।