ग्‍वारिनि जमुना चलीं बहोरि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


ग्‍वारिनि जमुना चलीं बहोरि।
ताहि सब मिलि कहतिं आवहु, कछुक कहतिं निहारि।
ज्‍वाब देति न हमहिं नागरि, रही आनन मोरि।
ठगि रही, मन कहा सोचति, काहु लियौ कछु चोरि।।
भुजा धरि कर कह्यौ चलहि न आवैं अबहीं खोरि।
सूर प्रभु के चरित सखियनि, कहति लोचन ढोरि।।1442।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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