गौरि गनेश्वर बीनऊं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


गौरि गनेश्वर बीनऊँ (हो), देवी सारद तोहिं।
गावौं हरि कौ सोहिलौ (हो), मन-आखर दै माहिं।
हरषि बधावा मन भयौ (हो), रानी जायौ पूत।
घर-बाहर मांगै सबै (हो), ठाढ़े मागध-सूत।
आठ मास चंदन पियौ (हो), नवएँ पियौ कपूर।
दसएं मास मोहन भये (हो), आँगन बाजै तूर।
हरषीं पास-परोसिनैं (हो), हरष नगर के लोग।
हरषीं सखी-सहेलरी (हो), आनंद भयौ सुभ-जोग।
बाजत बाजैं गहगहे (हो), बाजै मंदिर भेरि।
मालिनि बांधै तोरना (रे), आँगन रोपैं करि।
अनगढ़ सोना ढोलना (गढ़ि), ल्याए चतुर सुनार।
बीच-बीच हीरा लगे (नंद), लाल-गरे को हार।
जसुमति भाग-सुहागिनी (जिनि), जायौ हरि सौ पूत।
करहु ललन की आरती (री), अरु दधि काँदौ सूत।
नाइनि बोलहु नव नंगी (हो), ल्याउ महावर बेग।
लाख टका अरु झूमका (देहु), सारी दाइ कौ नेग।
अगरु चंदन कौ पालनौ (रंगि), इंगुर ढार-सुढार।
ले जायौं गढ़ि डोलना (हो), विसकर्मा सुतहार।
धनि सो दिन, धनि सो घरी (हो), धनि-धनि जोतिष-जाग।
धन्य–धन्य मथुरापुरी (हो), धन्य महर कौ भाग।
धनि-धनि माता देवकी (हो), धनि बसुदेव सुजान।
धनि-धनि भादौं अष्टमी (हो), जनम लियौ जब कान्ह।
काढ़ौ कौ‍रे कापरा (अरु), काढौ़ घी के मौन।
जाति-पांति पहिराइ कै (सब), समदि छतीसौ पौन।
काजर-रोरी आनहू (मिलि), करौ छठि कौ चार।
ऐपन की सी पूतरी (सब), सखियनि कियौ सिंगार।
क्रीट मुकुट सोभा बनी (सुभ), अंग बनी बनमाल।
सूरदास गोकुल प्रगट (भए), मोहन मदन गोपाल।।40।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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