गोविन्‍द तेरौ सरूप निगम नेति गावैं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



गोविन्‍द तेरौ सरूप निगम नेति गावैं।
भक्ति के बस स्‍याम सुंदर, देह धरे आवै।
जोगी जन ध्‍यान धरैं, सपनेहुँ नहिं पावैं।
नंद-धरनि बाँधि-बाँधि, कपी ज्‍यौं नचावैं।
गोपी जन प्रेमातुर, तिनकौं सुख दीन्‍हौं।
अपनैं-अपनैं रस बिलास, काहू नहिं चीन्‍हौं।
स्रुती, सुमृति, सब पुरान, कहत मुनि बिचारी।
सूरदास प्रेम कथा, सबही तैं न्‍यारी।।394।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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