गोपी सुनहु हरि कुसलात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग


  
गोपी सुनहु हरि कुसलात।
कंस नृप कौ मारि छोरे आपने पितुमात।।
बहुत विधि मनुहार करि, दियौ उग्रसेनहिं राज।
नगर लोग सुखी बसत है, भए सुरनि के काज।।
मोहि यह पाती दई लिखि, कह्यौ कछु संदेस।
‘सूर’ निर्गुन ब्रह्म उर धरि, तजहु सकल अदेस।।3484।।

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