गिरिवर नीकैं धरौ कन्हैया -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


गिरिवर नीकैं धरौ कन्हैया।
देखे रहौ टरै जनि नख तैं, भुजा तनक सी भैया।।
जब जब गाढ़ परत ब्रज-लोगनि, तब करि लेत सहैया।
जननि जसोदा कर लै चापति, अति स्रम होत नन्हैया।।
देखत प्रगट धरयौ गोबरधन, चिकित भए नँदरैया।
पिता देखि ब्याकुल मनमोहन, तब इक बुद्धि उपैया।।
आवहु तत गहहु गोबरधन, गोपनि संग लेवैया।
जहाँ-जहाँ सबहिनि गिरि टेक्यौ, कान्हहि अति देवैया।।
स्याम कहत सब नंद गोप सौं, भलैं लियो उचकैया।
सूरदास प्रभु अंतरजामी, नंदहि हरष बढ़ैया।।875।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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